बुद्ध्वा च सर्वं तत्त्वेन परराजचिकीर्षितम् । तथा प्रयत्नं आतिष्ठेद्यथात्मानं न पीडयेत्

वह सभापति और सब सभासद् वा दूत आदि यथार्थ से दूसरे विरोधी राजा के राज्य का अभिप्राय जान कर वैसा यत्न करे कि जिससे अपने को पीड़ा न हो ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

राजा के निवास योग्य देश एवं दुर्ग-

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