अनुरक्तः शुचिर्दक्षः स्मृतिमान्देशकालवित् । वपुष्मान्वीतभीर्वाग्मी दूतो राज्ञः प्रशस्यते ।

. वह ऐसा हो कि राज – काम में अत्यन्त उत्साह प्रीतियुक्त निष्कपटी, पवित्रात्मा चतुर बहुत समय की बात को भी न भूलने वाला देश और कालानुकूल वर्तमान का कत्र्ता सुन्दररूपयुक्त निर्भय, और बड़ा वक्ता वही राजा का दूत होने में प्रशस्त है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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