दूतं चैव प्रकुर्वीत सर्वशास्त्रविशारदम् । इङ्गिताकारचेष्टज्ञं शुचिं दक्षं कुलोद्गतम्

जो प्रशंसित कुल में उत्पन्न चतुर पवित्र हावभाव और चेष्टा से भीतर हृदय और भविष्यत में होने वाली बात को जानने हारा सब शास्त्रों में विशारद चतुर है उस दूत को रक्खे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

‘‘तथा जो सब शास्त्र में निपुण नेत्रादि के संकेत, स्वरूप तथा चेष्टा से दूसरे के हृदय की बात को जानने हारा, शद्ध, बड़ा स्मृतिमान्, देश, काल जानने हारा, सुन्दर, जिसका स्वरूप बड़ा वक्ता और अपने कुल में मुख्य हो, उस और स्वराज्य और परराज्य के समाचार देने हारे अन्य दूतों को भी नियत करे ।’’

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *