अपि यत्सुकरं कर्म तदप्येकेन दुष्करम् । विशेषतोऽसहायेन किं तु राज्यं महोदयम्

क्यों कि विशेष सहाय के बिना जो सुगम कर्म है वह भी एक के करने में कठिन हो जाता है जब ऐसा है तो महान् राज्य कर्म एक से कैसे हो सकता है ? इसलिए एक को राजा और एक की बुद्धि पर राज्य के कार्य को निर्भर रखना बहुत ही बुरा काम है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

‘‘क्यों कि सहायता बिना लिए साधारण काम भी एक को करना कठिन हो जाता है । फिर बड़े भारी राज्य का काम एक से कैसे हो सकता है ? इसलिए एक को राजा बनाना और उसी की बुद्धि पर सारे काम का बोझ रखना बुद्धिमत्ता नहीं है ।’’

(पू० प्र० १११)

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