मौलाञ् शास्त्रविदः शूरांल्लब्धलक्षान्कुलोद्भवान् । सचिवान्सप्त चाष्टौ वा प्रकुर्वीत परीक्षितान् ।

स्वराज्य – स्वदेश में उत्पन्न हुए वेदादि शास्त्रों के जानने वाले शूरवीर जिनके लक्ष्य और विचार निष्फल न हों, और कुलीन अच्छे प्रकार सुपरीक्षित सात वा आठ उत्तम, धार्मिक, चतुर मन्त्री करे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

‘‘और जो अपने राज्य में उत्पन्न, शास्त्रों के जानने हारे, शूरवीर, जिनका विचार निष्फल न होवे, कुलीन, धर्मात्मा, स्वराज्यभक्त हों, उन सात या आठ पुरूषों की अच्छी प्रकार परीक्षा करके मन्त्री करे; और इन्हीं की सभा में आठवां वा नववां राजा हो । ये सब मिलके कत्र्तव्याकत्र्तव्य कामों का विचार किया करें ।’’

(स० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘अपने राज्य और देश में उत्पन्न हुए, वेद वा शास्त्रों के जानने वाले, शूरवीर, कवि, गृहस्थ, अनुभवकत्र्ता, सात अथवा आठ धार्मिक बुद्धिमान् मन्त्री राजा को रखने चाहिए ।’’

(पू० प्र० १११)

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