द्वयोरप्येतयोर्मूलं यं सर्वे कवयो विदुः । तं यत्नेन जयेल्लोभं तज्जावेतावुभौ गणौ

और जो इस कामज और क्रोधज अठारह दोषों के मूल जिस लोभ को सब विद्वान् लोग जानते हैं उसको प्रयत्न से राजा जीते, क्यों कि लोभ ही से पूर्वोक्त अठारह और अन्य दोष भी बहुत से होते हैं ।

(स० वि० गृहाश्रम प्र०)

‘‘जो सब विद्वान् लोग कामज और क्रोधजों का मूल जानते हैं कि जिससे ये सब दुर्गुण मनुष्य को प्राप्त होते हैं उस लोभ को प्रयत्न से छोड़ें ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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