इन्द्रियाणां जये योगं समातिष्ठेद्दिवानिशम् । जितेन्द्रियो हि शक्नोति वशे स्थापयितुं प्रजाः

जब सभासद् और सभापति इन्द्रियों को जीतने अर्थात् अपने वश में रख के सदा धर्म में वर्ते और अधर्म से हटे – हटाए रहें, इसलिए रात – दिन नियत समय में योगाभ्यास भी करते रहें क्यों कि जो जितेन्द्रिय कि अपनी इन्द्रियों – जो मन, प्राण और शरीर प्रजा है इसको जीते बिना बाहर की प्रजा को अपने वश में स्थापन करने को समर्थ कभी नहीं हो सकता ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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