इन्द्रानिलयमार्काणां अग्नेश्च वरुणस्य च । चन्द्रवित्तेशयोश्चैव मात्रा निर्हृत्य शाश्वतीः ।

यह सभेश राजा इन्द्र अर्थात् विद्युत् के समान शीघ्र ऐश्वर्यकत्र्ता वायु के समान सबको प्राणवत् प्रिय और हृदय की बात जानने हारा यम – पक्षपातरहित न्यायाधीश के समान वत्र्तने वाला सूर्य के समान न्याय धर्म विद्या का प्रकाशक, अंधकार अर्थात् अविद्या अन्याय का निरोधक अग्नि के समान दुष्टों को भस्म करने हारा वरूण अर्थात् बांधने वाले के सदृश दुष्टों को अनेक प्रकार से बांधने वाला चन्द्र के तुल्य श्रेष्ठ पुरूषों को आनन्ददाता, धनाध्यक्ष के समान कोशों का पूर्ण करने वाला सभापति होवे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

इनकी स्वाभाविक मात्राओं – अंशों का सार लेकर ‘राजा’ के व्यक्तित्व का निर्माण किया है । (‘च’ से पूर्वश्लोक की क्रिया की अनुवृत्ति है) ।

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