दण्डो हि सुमहत्तेजो दुर्धरश्चाकृतात्मभिः । धर्माद्विचलितं हन्ति नृपं एव सबान्धवम् ।

दण्ड बड़ा तेजोमय है उसको अविद्वान् अधर्मात्मा धारण नहीं कर सकता तब वह दण्ड धर्म से रहित राजा ही का नाश कर देता है ।

कुलसहित………………………………………..

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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