आपदर्थं धनं रक्षेद्दारान्रक्षेद्धनैरपि । आत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।

आपत्ति में पड़ने पर आपत्ति से रक्षा के लिए धन की रक्षा करे, और धनों की अपेक्षा स्त्रियों की अर्थात् परिवार की रक्षा करे स्त्रियों से भी और धनों से भी बढ़कर निरन्तर अपनी रक्षा अर्थात् राजा के लिए आत्मरक्षा करना सबसे आवश्यक है । यदि उसकी रक्षा नहीं हो सकेगी तो वह न परिवार की रक्षा कर सकेगा और न धन की न राज्य की ।

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