धर्मज्ञं च कृतज्ञं च तुष्टप्रकृतिं एव च । अनुरक्तं स्थिरारम्भं लघुमित्रं प्रशस्यते

. धर्म को जानने और कृतज्ञ अर्थात् किये हुए उपकार को सदा मानने वाले प्रसन्न स्वभाव अनुरागी स्थिरारम्भी (स्थिरता पूर्वक कार्य करने वाला) लघु – छोटे मित्र को प्राप्त होकर प्रशंसित होता है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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