दण्ड के समान सेना को चलावे जैसा शंकट अर्थात् गाड़ी के समान वराह जैसे सूअर एक दूसरे के पीछे दौड़ते जाते हैं और कभी कभी सब मिलकर झुण्ड हो जाते हैं वैसे; जैसे मगर पानी में चलते हैं वैसे सेना को बनावे जैसे सूई का अग्रभाग सूक्ष्म पश्चात् स्थूल और उससे सूत्र स्थूल होता है वैसी शिक्षा से सेना को बनावे ; नीलकण्ठ (गरूड़) ऊपर नीचे झपट्टा मारता है इस प्रकार सेना को बनाकर लड़ावे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)