यथैनं नाभिसंदध्युर्मित्रोदासीनशत्रवः । तथा सर्वं संविदध्यादेष सामासिको नयः ।

. सब प्रकार के राजपुरूष, विशेष सभापति राजा ऐसा प्रयत्न करे कि जिस प्रकार राजादि जनों के मित्र, उदासीन और शत्रु को वश में करके अन्यथान कर पावें, ऐसे मोह में न फंसे यही संक्षेप से तय अर्थात् राजनीति कहाती है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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