वही दण्ड प्रजा का शासनकत्र्ता सब प्रजा का रक्षक है सोते हुए प्रजास्थ जनों में जागता है, इसीलिए बुद्धिमान् लोग दण्ड को ही धर्म कहते हैं ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
वह दण्ड ही………………….
‘‘और जैसा विद्वान् लोग दण्ड ही को धर्म जानते हैं, वैसा सब लोग जानें । क्यों कि दण्ड ही प्रजा का शासन अर्थात् नियम में रखने वाला, दण्ड ही सब का सब ओर से रक्षक, और दण्ड ही सोते हुओं में जागता है । चोरादि दुष्ट भी दंड ही के भय से पाप कर्म नहीं कर सकते ।’’
(स० वि० गृहाश्रम प्रक०)