सब कार्यों का वर्तमान में कत्र्तव्य और भविष्यत् में जो – जो करना चाहिए और जो – जो काम कर चुके, उन सबके यथार्थता से गुण – दोषों को विचार करे । पश्चात् दोषों के निवारण और गुणों की स्थिरता में यत्न करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
सब कार्यों का वर्तमान में कत्र्तव्य और भविष्यत् में जो – जो करना चाहिए और जो – जो काम कर चुके, उन सबके यथार्थता से गुण – दोषों को विचार करे । पश्चात् दोषों के निवारण और गुणों की स्थिरता में यत्न करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)