यदि तत्रापि संपश्येद्दोषं संश्रयकारितम् । सुयुद्धं एव तत्रापि निर्विशङ्कः समाचरेत् । ।

. जिसका आश्रय लेवे उस पुरूष के कर्मों में दोष देखें तो वहां भी अच्छे प्रकार युद्ध ही को निःशंक होकर करे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *