निग्रहं प्रकृतीनां च कुर्याद्योऽरिबलस्य च । उपसेवेत तं नित्यं सर्वयत्नैर्गुरुं यथा ।

. जो प्रजा और अपनी सेना और शत्रु के बल का निग्रह करे अर्थात् रोके उसकी सब यत्नों से गुरू के सदृश नित्य सेवा किया करे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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