‘‘एक – किसी अर्थ की सिद्धि के लिए कभी बलवान् राजा वा किसी महात्मा की शरण लेना, जिससे शत्रु से पीडि़त न हो; दो प्रकार का आश्रय लेना कहाता है ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
शत्रुओं द्वारा पीडि़त होकर अपने उद्देश्य की सिद्धि अथवा आत्मरक्षा के लिए किसी राजा का आश्रय लेना और भावी हार या दुःख से बचने के लिए किसी श्रेष्ठ राजा का आश्रय लेना ये दो प्रकार का ‘संश्रय’ कहलाता है ।