परस्परविरुद्धानां तेषां च समुपार्जनम् । कन्यानां संप्रदानं च कुमाराणां च रक्षणम् ।

और उस धर्म – अर्थ – काम में परस्परविरोध आ पड़ने पर उसे दूर करना और उनमें अभिवृद्धि करना और कन्याओं और कुमारों का गुरूकुलों में भेजना और उनकी सुरक्षा तथा विवाह का भी विचार करे

‘‘राजा को योग्य है कि सब कन्या और लड़कों को उक्त समय से उक्त समय तक ब्रह्मचर्य में रख के विद्वान् कराना । जो कोई इस आज्ञा को न माने तो उसके माता पिता को दण्ड देना अर्थात् राजा की आज्ञा से आठ वर्ष के पश्चात् लड़का वा लड़की किसी के घर में न रहने पावें । किन्तु आचार्यकुल में रहे जब तक समावत्र्तन का समय न आवे तब तक विवाह न होने पावे ।’’

(स० प्र० तृतीय समु०)

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