गिरिपृष्ठं समारुह्य प्रसादं वा रहोगतः । अरण्ये निःशलाके वा मन्त्रयेदविभावितः ।

पश्चात् उसके साथ घूमने को चला जाये पर्वत की शिखर अथवा एकान्त घर वा जंगल जिसमें एक श्लाका भी न हो वैसे एकान्त स्थान में बैठकर विरूद्ध भावना को छोड़ मन्त्री के साथ विचार करे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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