‘‘जो व्यापार करने वाले वा शिल्पी को सुवर्ण और चांदी का जितना लाभ हो उसमें से पचासवां भाग, चावल आदि अन्नों में छठा आठवां वा बारहवां भाग लिया करे, और जो धन लेवे तो भी उस प्रकार से लेवे कि जिससे किसान आदि खाने – पीने और धन से रहित होकर दुःख न पावें ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
राजा को पशुओं और सोने के लाभ में से पचासवां भाग, और अन्नों का छठा, आठवां या अधिक से अधिक बारहवां भाग ही लेना चाहिए ।