क्रयविक्रयं अध्वानं भक्तं च सपरिव्ययम् । योगक्षेमं च संप्रेक्ष्य वणिजो दापयेत्करान् ।

खरीद और बिक्री भोजन तथा भरण – पोषण का व्यय और लाभ इन सब बातों पर विचार करके राजा को व्यापारी से कर लेने चाहिए ।

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