ग्रामदोषान्समुत्पन्नान्ग्रामिकः शनकैः स्वयम् । शंसेद्ग्रामदशेशाय दशेशो विंशतीशिने ।

इसी प्रकार प्रबंध करे और आज्ञा देवे कि वह एक – एक ग्रामों के पति ग्रामों में नित्यप्रति जो – जो दोष उत्पन्न हों उन – उनको गुप्तता से दशग्राम के पति को विदित कर दे, और वह दश ग्रामाधिपति उसी प्रकार बीस ग्राम के स्वामी को दशग्रामों का वर्तमान (की स्थिति) नित्य प्रति जना देवे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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