यथोद्धरति निर्दाता कक्षं धान्यं च रक्षति । तथा रक्षेन्नृपो राष्ट्रं हन्याच्च परिपन्थिनः

. जैसे धान्य का निकालने वाला छिलकों को अलग कर धान्य की रक्षा करता अर्थात् टूटने नहीं देता है वैसे राजा डाकू – चोरों को मारे और राज्य की रक्षा करे ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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