ब्रह्मचारी गृहस्थश्च वानप्रस्थो यतिस्तथा । एते गृहस्थप्रभवाश्चत्वारः पृथगाश्रमाः

. ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास ये चारों अलग – अलग आश्रम गृहस्थाश्रम से ही उत्पन्न हुए हैं ।

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