इस विधि से धीरे – धीरे सब संग से हुए, दोषों को छोड़ के सब हर्ष – शोकादि द्वन्द्वों से विशेषकर निर्मुक्त होके विद्वान् संन्यासी ब्रह्म ही में स्थिर होता है ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
इस विधि से धीरे – धीरे सब संग से हुए, दोषों को छोड़ के सब हर्ष – शोकादि द्वन्द्वों से विशेषकर निर्मुक्त होके विद्वान् संन्यासी ब्रह्म ही में स्थिर होता है ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)