प्राणायामा ब्राह्मणस्य त्रयोऽपि विधिवत्कृताः । व्याहृतिप्रणवैर्युक्ता विज्ञेयं परमं तपः ।

ब्राह्मण अर्थात् ब्रह्मवित् संन्यासी को उचित है कि ओंकारपूर्वक सत्पव्याहृतियों से विधिपूर्वक प्राणायाम जितनी शक्ति हो उतने करे परन्तु तीन से तो न्यून प्राणायान कभी न करे यही संन्यासी का परम तप है ।

(सं० प्र० पंच्चम समु०)

‘‘इस पवित्र आश्रम को सफल करने के लिए संन्यासी पुरूष विधिवत् योग – शास्त्र की रीति से सात व्याहृतियों के पूर्व सात प्रणव लगाके जैसा कि पृष्ठ १५९ में प्राणायाम का मन्त्र लिखा है, उसको मन से जपता हुआ तीन भी प्राणायाम करे तो तो जानो अत्युत्कृष्ट तप करता है ।’’

(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)

‘‘ओं भूः, ओं भुवः, ओं स्वः, ओं महः, ओं जनः, ओं तपः, ओं सत्यम् ।’’

‘‘इस रीति से कम से कम तीन और अधिक से अधिक इक्कीस प्राणायाम करे ।’’

(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)

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