अभिपूजितलाभांस्तु जुगुप्सेतैव सर्वशः । अभिपूजितलाभैश्च यतिर्मुक्तोऽपि बध्यते ।

और बहुत अधिक आदर – सत्कार से मिलने वाली भिक्षा या अन्य लाभों से सर्वथा उपेक्षा बरते, क्यों कि बहुत अधिक आदर – सत्कार से प्राप्त होने वाली भिक्षा से अथवा लाभों से मुक्त संन्यासी भी विषयों के बंधन में फंस जाता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *