अलाभे न विषदी स्याल्लाभे चैव न हर्षयेत् । प्राणयात्रिकमात्रः स्यान्मात्रासङ्गाद्विनिर्गतः ।

भिक्षा के न मिलने पर दुःखी न हो और मिलने पर प्रसन्नता अनुभव न करे अधिक – कम, अच्छी – बुरी भिक्षा की मात्रा का मोह न करके अर्थात् जैसी भी भिक्षा मिल जाये उसे ग्रहण करके केवल अपनी प्राणयात्रा को चलाने योग्य भिक्षा प्राप्त कर ले ।

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