एककालं चरेद्भैक्षं न प्रसज्जेत विस्तरे । भैक्षे प्रसक्तो हि यतिर्विषयेष्वपि सज्जति ।

. संन्यासी एक ही समय भिक्षा मांगे भिक्षा के अधिक विस्तार अर्थात् लालच में न पड़े क्यों कि भिक्षा के लालच में या स्वाद में मन लगाने वाला संन्यासी विषयों में भी फंस जाता है ।

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