क्ल्प्तकेशनखश्मश्रुः पात्री दण्डी कुसुम्भवान् । विचरेन्नियतो नित्यं सर्वभूतान्यपीडयन् ।

केश, नख, दाढ़ी, मूंछ को छेदन करवावे पात्र, दण्ड और कुसुम्भ आदि से रंगे हुए वस्त्रों को ग्रहण करके निश्चितात्मा सब भूतों को पीड़ा न देकर सर्वत्र विचारे ।   (स० प्र० पंच्चम समु०)

‘‘सब शिर के बाल, दाढ़ी, मूंछ, और नखों को समय – समय पर छेदन कराता रहे । पात्री, दण्डी और कुसुंभ के रंगे हुए – वस्त्रों को धारण किया करे । सब भूत – प्राणि मात्र को पीड़ा न देता हुआ दृढ़ात्मा होकर नित्य विचार करे ।’’

(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)

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