अतिवादांस्तितिक्षेत नावमन्येत कं चन । न चेमं देहं आश्रित्य वैरं कुर्वीत केन चित्

अपमानजनक वचनों को सहन करले कभी किसी का अपमान न करे और इस शरीर का आश्रम लेकर अर्थात् अपने शरीर – मन, वाणी, कर्म से किसी से वैर न करे ।

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