दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत् । सत्यपूतां वदेद्वाचं मनःपूतं समाचरेत् ।

जब संन्यासी मार्ग में चले तब इधर – उधर न देख कर नीचे पृथिवी पर दृष्टि रखके चले सदा वस्त्र से छान के जल पिये निरन्तर सत्य ही बोले सर्वदा मन से विचार के सत्य का ग्रहण कर असत्य को छोड़ देवे ।

(स० प्र० पंच्चम समु०)

‘‘चलते समय आगे – आगे देखके पग धरे, सदा वस्त्र से छानकर जल पीवे, सबसे सत्य वाणी बोले अर्थात् सत्योपदेश ही किया करे, जो कुछ व्यवहार करे वह सब मन की पवित्रता से आचरण करे ।’’

(सं० वि० सन्यासाश्रम सं०)

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