न तो अपने जीवन में आनन्द और न मृत्यु में दुःख माने, किन्तु जैसे क्षुद्र भृत्य अपने स्वामी की आज्ञा की बाट देखता रहता है वैसे ही काल और मृत्यु की प्रतीक्षा करता रहे ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
न तो अपने जीवन में आनन्द और न मृत्यु में दुःख माने, किन्तु जैसे क्षुद्र भृत्य अपने स्वामी की आज्ञा की बाट देखता रहता है वैसे ही काल और मृत्यु की प्रतीक्षा करता रहे ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)