जब सब कामों को जीत लेवे और उनकी अपेक्षा न रहे पवित्रात्मा और पवित्रान्तःकरण मननशील हो जावे तभी गृहाश्रम से निकलकर संन्यासाश्रम का ग्रहण करे अथवा ब्रह्मचर्य ही से संन्यास का ग्रहण कर लेवे ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)
जब सब कामों को जीत लेवे और उनकी अपेक्षा न रहे पवित्रात्मा और पवित्रान्तःकरण मननशील हो जावे तभी गृहाश्रम से निकलकर संन्यासाश्रम का ग्रहण करे अथवा ब्रह्मचर्य ही से संन्यास का ग्रहण कर लेवे ।
(सं० वि० संन्यासाश्रम सं०)