यस्मादण्वपि भूतानां द्विजान्नोत्पद्यते भयम् । तस्य देहाद्विमुक्तस्य भयं नास्ति कुतश्चन ।

जिस द्विज से प्राणियों को थोड़ा – सा भी भय नहीं होता उसको देह से मुक्त होने पर कहीं भी भय नहीं रहता ।

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