अग्निहोत्रं समादाय गृह्यं चाग्निपरिच्छदम् । ग्रामादरण्यं निःसृत्य निवसेन्नियतेन्द्रियः

जब गृहस्थ वानप्रस्थ होने की इच्छा करे तब अग्निहोत्र को सामग्री – सहित लेके गांव से निकल जंगल में जितेन्द्रिय होकर निवास करे ।

(सं० वि० वानप्रस्थाश्रम सं०)

‘‘सांगोपांग अग्निहोत्र को लेकर ग्राम से निकल दृढ़ेन्द्रिय होकर अरण्य में जाकर बसे ।’’

(स० प्र० पंच्चम समु०)

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