तापसेष्वेव विप्रेषु यात्रिकं भैक्षं आहरेत् । गृहमेधिषु चान्येषु द्विजेषु वनवासिषु । ।

जो जंगल में पढ़ाने और योगाभ्यास करने हारे तपस्वी, धर्मात्मा विद्वान् लोग रहते हों । जो कि गृहस्थ वा वानप्रस्थ वनवासी हों, उनके घरों में से ही भिक्षा ग्रहण करे ।

(सं० वि० वानप्रस्थाश्रम सं०)

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