देवताभ्यस्तु तद्धुत्वा वन्यं मेध्यतरं हविः । शेषं आत्मनि युञ्जीत लवणं च स्वयं कृतम् ।

उस पवित्र वन के अन्नों से निर्मित हवि को देवताओं के लिए होम कर – आहुति देकर शेष भोजन को और अपने लिए बनाये गये लवणयुक्त पदार्थों को अपने खाने के लिए प्रयोग में लायें ।

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