यद्ध्यायति यत्कुरुते रतिं बध्नाति यत्र च । तदवाप्नोत्ययत्नेन यो हिनस्ति न किं चन ।

जो व्यक्ति किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करता वह जिसका ध्यान करता है जिस काम को करता है और जहां धैर्य से मन लगाता है उसको सुगमता से प्राप्त कर लेता है ।

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