एका लिङ्गे गुदे तिस्रस्तथैकत्र करे दश । उभयोः सप्त दातव्या मृदः शुद्धिं अभीप्सता ।

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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