जल से शरीर के बाहर के अवयव सत्याचरण से मन विद्या और तप अर्थात् सब प्रकार के कष्ट भी सह के धर्म ही के अनुष्ठान करने से जीवात्मा ज्ञान अर्थात् पृथिवी से ले के परमेश्वर पर्यन्त पदार्थों के विवेक से बुद्धि दृढ़ निश्चय पवित्र होती है ।
(स० प्र० तृतीय समु०)
‘‘किन्तु जल से ऊपर के अंग पवित्र होते हैं आत्मा और मन नहीं, मन तो सत्य मानने, सत्य बोलने और सत्य करने से शुद्ध और जीवात्मा विद्या, योगाभ्यास और धर्माचरण ही से पवित्र तथा बुद्धि ज्ञान से ही शुद्ध होती है, जल मृत्तिकादि से नहीं’’
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)