Adhyay : 5 Mantra : 103 Back to listings अनुगम्येच्छया प्रेतं ज्ञातिं अज्ञातिं एव च । स्नात्वा सचैलः स्पृष्ट्वाग्निं घृतं प्राश्य विशुध्यति Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related