तां विवर्जयतस्तस्य रजसा समभिप्लुताम् । प्रज्ञा तेजो बलं चक्षुरायुश्चैव प्रवर्धते ।

रज निकलती हुई अर्थात् रजस्वला स्त्री से उपभोग न करने वाले उस मनुष्य के बुद्धि, तेज, बल, नेत्रज्योति और आयु ये सब बढ़ते हैं ।

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