यात्रामात्रप्रसिद्ध्यर्थं स्वैः कर्मभिरगर्हितैः । अक्लेशेन शरीरस्य कुर्वीत धनसंचयम् ।

गृहस्थन्तर्गत आजीविका – सम्बन्धी कर्तव्य –

अपने अनिन्दित अर्थात् श्रेष्ठकर्मों से शरीर को अधिक कष्ट न देकर केवल जीवन यात्रा को चलाने के लिए ही (अर्थात् जिससे जीवन कष्टरहित रूप में चलता रहे और उससे अधिक ऐश्वर्य भोग की कामना न हो) धन का संचय करे ।

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