जो मनुष्य अपने कुल को उत्तम करना चाहे वह नीच – नीच पुरूषों का सम्बन्ध छोड़कर नित्य अच्छे – अच्छे पुरूषों से सम्बन्ध बढ़ाता जावे ।
(स० वि गृहाश्रम प्र०)
जो मनुष्य अपने कुल को उत्तम करना चाहे वह नीच – नीच पुरूषों का सम्बन्ध छोड़कर नित्य अच्छे – अच्छे पुरूषों से सम्बन्ध बढ़ाता जावे ।
(स० वि गृहाश्रम प्र०)