उस हेतु से परलोक अर्थात् परजन्म में सुख और जन्म के सहायार्थ नित्य धर्म का संचय धीरे – धीरे करता जाये क्यों कि धर्म ही के सहाय से बड़े – बड़े दुस्तर दुःखसागर को जीव तर सकता है ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
उस हेतु से परलोक अर्थात् परजन्म में सुख और जन्म के सहायार्थ नित्य धर्म का संचय धीरे – धीरे करता जाये क्यों कि धर्म ही के सहाय से बड़े – बड़े दुस्तर दुःखसागर को जीव तर सकता है ।
(स० प्र० चतुर्थ समु०)