यमान्सेवेत सततं न नित्यं नियमान्बुधः । यमान्पतत्यकुर्वाणो नियमान्केवलान्भजन् । ।

यम – सेवन की प्रधानता

यमों का सेवन नित्य करे केवल नियमों का नहीं, क्यों कि यमों को न करता हुआ और केवल नियमों का सेवन करता हुआ भी अपने कत्र्तव्य से पतित हो जाता है, इसलिए यम सेवन पूर्वक नियम – सेवन नित्य किया करे ।

(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार)

अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः ।। (योग०)

निर्वेरता, सत्यबोलना, चोरीत्याग, वीर्यरक्षण और विषयभोग में घृणा ये ५ यम हैं ।

शौच, सन्तोष, तपः (हानि – लाभ आदि द्वन्द्व का सहना), स्वाध्याय, वेद का पढ़ना, ईश्वरप्रणिधान – सर्वस्व ईश्वरार्पण, ये ५ नियम कहाते हैं ।

(सं० वि० वेदारम्भ संस्कार में ऋ० दया० की टिप्पणी)

 

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