अद्रोहेणैव भूतानां अल्पद्रोहेण वा पुनः । या वृत्तिस्तां समास्थाय विप्रो जीवेदनापदि

गृहस्थन्तर्गत आजीविका – सम्बन्धी कर्तव्य –

द्विज व्यक्ति आपत्तिरहितकाल में प्राणियों को जिससे किसी प्रकार की पीड़ा न पहुंचे अथवा ऐसी वृत्ति न मिलने पर बाद में जिसमें प्राणियों को कम से कम पीड़ा हो ऐसी जो वृत्ति -आजीविका हो उसको अपनाकर जीवननिर्वाह करे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *