आचार्यो ब्रह्मलोकेशः प्राजापत्ये पिता प्रभुः । अतिथिस्त्विन्द्रलोकेशो देवलोकस्य च र्त्विजः

यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है .

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