Adhyay : 4 Mantra : 182 Back to listings आचार्यो ब्रह्मलोकेशः प्राजापत्ये पिता प्रभुः । अतिथिस्त्विन्द्रलोकेशो देवलोकस्य च र्त्विजः Leave a comment यह प्रक्षिप्त श्लोक है और मनु स्मृति का भाग नहीं है . Related